गाँव में रहता है, लुंगी पहनता है, साइकिल चलता है, फिर भी कमा रहा करोड़ो, कैसे? ZOHO Business Success Story

आज के समय में लोग सोचते हैं कि महंगे सूट पहनकर और बड़ी-बड़ी अंग्रेजी बोलकर ही कोई करोड़पति बन सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है। तमिलनाडु के एक छोटे से गाँव में रहने वाले साधारण इंसान श्रीधर वेम्बू ने यह साबित कर दिया है कि असली सफलता दिखावे में नहीं, सोच में होती है। यह वही व्यक्ति हैं जो लुंगी पहनकर साइकिल से गाँव में घूमते हैं, और फिर भी आज अरबों की कंपनी के मालिक हैं ZOHO Corporation के संस्थापक।

गाँव से शुरू हुआ सपना

श्रीधर वेम्बू का जन्म तमिलनाडु के एक छोटे गाँव में हुआ। परिवार आम था, सुविधाएं सीमित थीं, लेकिन सपना बड़ा था। IIT मद्रास से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद वे अमेरिका गए, वहाँ उन्होंने कुछ साल काम किया, लेकिन मन में हमेशा यही चलता रहा कि “गाँव का युवा भी कुछ बड़ा कर सकता है, अगर उसे मौका मिले।” इसी सोच से उन्होंने भारत लौटकर 1996 में अपने भाई के साथ मिलकर एक छोटी कंपनी शुरू की AdventNet, जो आगे चलकर ZOHO Corporation बनी।

ZOHO की शुरुआत और संघर्ष

शुरुआत में न ऑफिस था, न फंडिंग। लेकिन उनका आत्मविश्वास मजबूत था। श्रीधर का मकसद था भारत में बना सॉफ्टवेयर दुनिया तक पहुँचाना। उन्होंने अपने गाँव तेनकासी में कंपनी का हेड ऑफिस बनाया जहाँ अब हजारों लोग काम करते हैं। ZOHO आज CRM, अकाउंटिंग, ईमेल और बिजनेस टूल्स जैसी 50 से ज्यादा सर्विसेज़ देता है।

उनकी कंपनी बिना किसी बाहरी निवेश (Investment) के इतनी बड़ी बनी है। आज ZOHO के 100 मिलियन से ज्यादा यूजर्स हैं और यह गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों को टक्कर दे रही है।

शार्क टैंक के जज से 40 गुना ज्यादा कमाई (Income)

यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि शार्क टैंक इंडिया के जज अमन गुप्ता (boAt के को-फाउंडर) की सालाना कमाई करीब ₹68 करोड़ है। लेकिन श्रीधर वेम्बू की कंपनी ZOHO Corporation की वैल्यू इतनी बड़ी है कि उनकी व्यक्तिगत कमाई अमन गुप्ता से लगभग 40 गुना ज्यादा है। यानी करीब ₹2700 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई (Income)

फिर भी श्रीधर वेम्बू का रहन-सहन एक साधारण गाँववाले जैसा है। वे लुंगी पहनकर ऑफिस जाते हैं, साइकिल चलाते हैं, और खेतों में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। उन्होंने कभी भी अपनी सफलता का दिखावा नहीं किया। यही उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गई है।

गाँव से चला देश का सॉफ्टवेयर साम्राज्य

ZOHO का मुख्यालय चेन्नई या बेंगलुरु जैसे शहरों में नहीं, बल्कि गाँव में है। श्रीधर वेम्बू का मानना है कि अगर भारत के गाँवों को तकनीकी रूप से सक्षम बना दिया जाए, तो पूरा देश आत्मनिर्भर हो जाएगा। उन्होंने गाँव के युवाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें कंपनी में रोजगार दिया।

आज तेनकासी के छोटे गाँवों में ZOHO के कर्मचारी लैपटॉप पर काम करते हैं, विदेशी क्लाइंट्स से मीटिंग करते हैं, और अपनी जिंदगी संवार रहे हैं। इस तरह श्रीधर ने गाँव में स्थानीय रोजगार (Local Job) की नई दिशा दी है।

करोड़ों की कमाई लेकिन जमीन से जुड़ा जीवन

आज ZOHO की वैल्यू करीब 10 अरब डॉलर (लगभग 83,000 करोड़ रुपये) है। लेकिन श्रीधर वेम्बू आज भी मिट्टी से जुड़े हैं। न कोई महंगी कार, न बड़ा बंगला। वे कहते हैं, “मुझे करोड़ों की कमाई (Income) से ज्यादा खुशी तब मिलती है जब मेरे गाँव के बच्चे कंप्यूटर सीखते हैं।”

वे गाँवों में स्कूल चलाते हैं जहाँ गरीब बच्चों को मुफ्त टेक्नोलॉजी की शिक्षा दी जाती है। वे चाहते हैं कि भारत का हर बच्चा डिजिटल युग में कदम रख सके, चाहे वह शहर में हो या गाँव में।

युवाओं के लिए प्रेरणा

श्रीधर वेम्बू उन युवाओं के लिए उदाहरण हैं जो सोचते हैं कि सफलता पाने के लिए विदेश या बड़े शहर जाना जरूरी है। उन्होंने दिखाया कि असली ताकत आपके सोचने के तरीके में है, न कि जगह या कपड़ों में।

उन्होंने यह साबित कर दिया कि लुंगी पहनने वाला एक साधारण इंसान भी दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों को चुनौती दे सकता है। अगर आपके अंदर लगन और मेहनत है, तो आप भी ZOHO जैसी सफलता की कहानी लिख सकते हैं।

निष्कर्ष

यह कहानी एक सच्ची प्रेरणा है जहाँ दिखावे के बिना, पूरी ईमानदारी और कर्म से एक व्यक्ति ने भारत के गाँव से दुनिया को हिला दिया। श्रीधर वेम्बू की सोच ने साबित किया कि “सफलता का असली पता गाँव की मिट्टी में भी मिल सकता है।”

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल जानकारी और प्रेरणा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। इसे किसी निवेश (Investment) या वित्तीय सलाह के रूप में न लें।

Leave a Comment

WhatsApp Logo Join